संस्कृत वर्णमाला
सभी भाषा की लिखने के लिए
इसके अनुरुप एक लिपि होती है| संस्कृत भाषा जो की एक प्रमुख
भाषा है, जिसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है| दूसरी भाषा की तरह संस्कृत के पास भी अपनी एक वर्णमाला है जिसे “संस्कृत वर्णमाला” के नाम
से जाना जाता है| संस्कृत वर्णमाला अनुसार उसमे कुल 33
व्यंजन,13 स्वर और 4 आयोगवाह
को मिलाकर 50 वर्ण है|
इस लेख के माध्यम से आज हम
संस्कृत की वर्णमाला को अच्छे से समजेंगे जो आगे हमें संस्कृत भाषा सिखने में मदद
करेंगी|
संस्कृत वर्णमाला –
वर्ण जो की संस्कृत में
लेखन का सबसे छोटा एकं है| ऐसे 50 वर्ण मिलकर
संस्कृत की वर्णमाला तैयार होती है| इसमे कुल 33 व्यंजनों, 13 स्वर और 4 आयोगवाह
होते है|संस्कृत में स्वर को ‘अच्’
और ब्यंजन को ‘हल्’ के
रूप में भी जाना जाता है। यह सभी से बनती वर्णमाला संस्कृत को एक पूर्ण भाषा के
रूप में प्रस्थापित करती है|
वर्णमाला को समजने के लिए स्वर,
व्यंजन और आयोगवाह को समजना काफी आवश्यक
है|
स्वर क्या है? (What is Vowel in Hindi?)
यह एक स्वतंत्र ध्वनी होती
है जो अपने आप में ही एक पूर्ण ध्वनी है| स्वर का उच्चारण करने के लिए
किसी भी अन्य ध्वनी की सहायता लेने की आवश्यकता नहीं होती है| कुल स्वर कुछ इस तरह होते है|
“अ, आ, इ, ई, ए, ऐ, ओ, औ, उ, ऊ, ऋ, अं, अः”
इन 13 स्वर में से 9
स्वर (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, अं, अः) मूल स्वर है जब की
बाकी के 4 स्वर(ए, ऐ, ओ, औ) को संयुक्त स्वर कहा है|
स्वर का विभाजन
संस्कृत वर्णमाला अनुसार 13 स्वर का
विभाजन कुल अलग अलग तिन तरीको से किया जाता है|जो निचे दिए
गए है|
1. ह्रस्व स्वर, दीर्ध स्वर, प्लुत स्वर के आधार पर
2. संवृत और विवृत के आधार
3. संध्य स्वर और समान स्वर के आधार पर
ह्रस्व स्वर, दीर्ध स्वर,
प्लुत स्वर के आधार पर
1. ह्रस्व स्वर -इसमे
कुल स्वर की संख्या 5 है। जो ” अ ,
इ , उ , ऋ , लृ ” है|
2. दीर्घ स्वर – इसमे
कुल स्वर की संख्या 7 है। जो “आ ,
ई , ऊ , ॠ , ए , ओ, औ” है|
3. प्लुत स्वर – यह
तीसरे प्रकार के स्वर में 1 संख्या है| जो “३” है|
संवृत और विवृत के आधार पर
स्वर का विभाजन या प्रकार
संवृत और विवृत स्वर में स्वर
को उच्चारण के समय मुह की स्थति के आधार पर विभाजित किया जाता है| मुख कितना
खुलता है उसी को अधर बनाकर स्वर को संवृत और विवृत में बाँटा गया है| इस आधार पर चार प्रकार में विभाजित किया गया है|
संवृत स्वर –
·
इस स्वर के उच्चारण के समय मुख का द्वार सकरा/संकुचित(narrow) होता है|
·
13 स्वर में से कुल चार स्वर इस प्रकार के है|
·
जैसे की “इ , ई , उ , ऊ” संवृत स्वर है|
अर्द्ध संवृत स्वर –
·
इस प्रकार के स्वर के उच्चारण में मुख का द्वार
थोडा कम सकरा होता है।
·
अर्द्ध संवृत स्वर की संख्या कुल 13 स्वर में
से 2 है|
·
“ए , ओ” को अर्द्ध संवृत स्वर कहा जाता है|
विवृत स्वर – इस स्वर के उच्चारण में मुख की स्थिति पूर्ण रूप से खुली
हुई होती है|
·
विवृत स्वर की संख्या कुल 13 स्वर में
से 2 है|
·
“आ , आँ” इसी
के प्रकार है|
अर्द्ध विवृत स्वर –
इस स्वर के उच्चारण के समय मुख की स्थिति
अर्ध-खुलीं
होती है|
·
अर्द्ध विवृत स्वर की संख्या 4 है|
·
“अ , ऐ , औ ,
ऑ” इसी के उदहारण है|
संध्य और सामान स्वर के आधार
पर विभाजन
·
ए , ऐ , ओ , औ को संध्य स्वर कहा जाता है|
·
बाकी के 9 स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, अं, अः को समान स्वर कहा जाता है|
संस्कृत वर्णमाला में व्यंजन
क्या है?
(What is Consonants in Sanskrit Alphabet?)
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