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1ST SEMESTER SCIENCE | सजीव एवं निर्जीव वस्तुओं का अर्थ एवं अन्तर | MEANING AND DIFFERENCE OF LIVING AND NON-LIVING THINGS

 





 

सजीव एवं निर्जीव वस्तुओं का अर्थ एवं अन्तर

(MEANING AND DIFFERENCE OF LIVING AND NON-LIVING THINGS)

 

सजीव एवं निर्जीव वस्तुओं का अर्थ, लक्षण, अन्तर एवं गतिविधि | Meaning, Target Difference and activity of Living and Non-Living Things-:

 

1.       सजीव वस्तुएँ (Living Things)-  वे वस्तुएँ जिनमें वृद्धि एवं विकास होता है, सजीव वस्तुएँ कहलाती हैं। जिनमें वृद्धि एक निश्चित समय तक होती है किन्तु विकास की प्रक्रिया चलती रहती है। उदाहरण-वृक्ष, जानवर आदि ।

 

अनुक्रम (Contents)

 

सजीवों के लक्षण (Features of Living Things)-

    (i) आकार एवं आकृति (Shape and Size)-

    (ii) कोशिकीय संरचना (Cellular Structure)-

    (iii) जीव द्रव्य (Protoplasm)-

    (iv) प्रचलन तथा गति (Locomotion and Movement)-

    (v) पोषण (Nutrition)-

    (vi) श्वसन (Respiration)-

    (vii) प्रजनन (Reproduction)-

    (viii) उत्सर्जन (Excretion)-

    (ix) वृद्धि (Growth)-

    (x) उत्तेजनशीलता (Irritability)-

    गतिविधि (Activity)

 

सजीवों के लक्षण (Features of Living Things)-

 

सजीवों में निम्नलिखित लक्षण पाये जाते-

 

(i) आकार एवं आकृति (Shape and Size)-

सभी सजीवों का आकार एवं आकृति निश्चित होती है। जैसे— अशोक का वृक्ष शंक्वाकार तथा खजूर का वृक्ष मुकुटाकार होता है।

 

(ii) कोशिकीय संरचना (Cellular Structure)-

इनका शरीर अनेक छोटी-छोटी कोशिकाओं से बना होता है।

 

 

(iii) जीव द्रव्य (Protoplasm)-

सजीवों की कोशिकाओं में जीव द्रव्य पाया जाता है, जो कि जीवन का भौतिक आधार है अर्थात् जीवन की सभी क्रियाएँ इसी के द्वारा सम्पादित होती हैं।

 

(iv) प्रचलन तथा गति (Locomotion and Movement)-

सभी जीवधारी किसी न किसी रूप में प्रचलन अवश्य करते हैं। इन्हें प्रचलन की आवश्यकता भोजन, आवास तथा रक्षा के लिये पड़ती है। पौधे एक स्थान से दूसरे स्थान को नहीं जाते, लेकिन उनकी पत्तियाँ अथवा फूल गति करते हैं। फूलों का खिलना, जड़ों का जमीन की ओर जाना उनकी गति को दर्शाता है। कुछ पौधे सुबह खिलते हैं और रात को बन्द हो जाते हैं। छुईमुई की पत्तियाँ छूने से बन्द हो जाती हैं। पौधे प्रचलन में स्थान परिवर्तन नहीं करते हैं। जन्तु प्रचलन में स्थान परिवर्तन करते हैं।

 

(v) पोषण (Nutrition)-

सभी जीवधारी कुछ न कुछ कार्य अवश्य करते हैं। कार्य करने के लिये उन्हें ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। इसलिये जीव किसी न किसी रूप में भोजन अवश्य करते हैं। जीवित रहने और वृद्धि के लिये भी भोजन आवश्यक है। पौधे अपना भोजन प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा बनाते हैं। जन्तु अपना भोजन स्वयं नहीं बनाते हैं। वे अपने भोजन के लिये पौधों और जानवरों पर निर्भर रहते हैं।

 

(vi) श्वसन (Respiration)-

श्वसन सजीवों का मुख्य लक्षण है। सभी जन्तु और पेड़-पौधे श्वसन क्रिया करते हैं। इसमें ये वायुमण्डल की ऑक्सीजन (O2) ग्रहण करके कोशिकाओं में उपस्थित भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण करते हैं जिसके फलस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा सजीवों के कार्य करने में काम आती है। अधिकांश जीव-जन्तु नाक से श्वास लेते हैं। मछली गिल्स से तथा पत्तियाँ स्टोमेटा से श्वसन क्रिया करती हैं।

 

(vii) प्रजनन (Reproduction)-

यह सजीवों का एक प्रमुख लक्षण है। जिसमें सभी जीवधारी अपने वंश को बनाये रखने के लिये अपने जैसे जीव उत्पन्न करते हैं। अधिकांश पौधे बीजों का निर्माण करते हैं। ये बीज वृद्धि करके उसी प्रकार के नये पौधों को जन्म देते हैं। जैसे आम का बीज, आम के पेड़ के रूप में ही वृद्धि करता है। जन्तु अण्डे या शिशु को जन्म देते हैं। कुत्ता पिल्ले को जन्म देता है और मानव जाति अपने ही समान शिशु को जन्म देता है जो लड़का अथवा लड़की के रूप में वृद्धि करता है।

 

(viii) उत्सर्जन (Excretion)-

सजीवों के उपापचय के फलस्वरूप वर्ण्य पदार्थों का निर्माण होता है। ये उत्सर्जन क्रिया में बाहर निकाल दिये जाते हैं।

 

 

 

 

(ix) वृद्धि (Growth)-

यह सजीवों का एक प्रमुख लक्षण है। जिसमें कोई भी जीव सूक्ष्म रूप में उत्पन्न होता है और धीरे-धीरे वृद्धि करके विशालकाय हो जाता है। जैसे एक बीज नवोद्भिद् से पौधा उत्पन्न होता है। यह धीरे-धीरे वृद्धि करके एक विशाल वृक्ष बन जाता है। इसी प्रकार शिशु धीरे-धीरे बड़ा होकर एक मनुष्य बन जाता है।

 

(x) उत्तेजनशीलता (Irritability)-

यह सजीवों का ऐसा लक्षण है जिसमें जीवधारी बाहरी उद्दीपनों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। जैसे- छुई-मुई को छूते ही पत्तियाँ मुरझा जाती हैं। गर्म वस्तु से हाथ लगते ही हाथ पीछे हट जाता है।

 

2.       निर्जीव वस्तुएँ (Non-living Things)— वे वस्तुएँ जिनमें वृद्धि एवं विकास नहीं होता, निर्जीव वस्तुएँ कहलाती हैं। निर्जीव वस्तुएँ प्रायः मानव निर्मित होती हैं। उदाहरण— कुर्सी, मेज, गाड़ी आदि।

 

निर्जीव वस्तुओं के लक्षण (Features of Non-living Things)- निर्जीव सजीवों से विपरीत लक्षण दर्शाते हैं।

 

 

 

सजीव व निर्जीव में अन्तर

 

(DIFFERENCE BETWEEN LIVING AND NON-LIVING)

सजीव (LIVING)

निर्जीव (NON-LIVING)

1. सजीव को ऊर्जा प्राप्त हो तो भोजन की आवश्यकता होती है।

1. निर्जीवों को भोजन की आवश्यकता नहीं होती आवश्यकता होती है।

2. सजीवों में गति होती है।

2. निर्जीवों में गति नहीं होती है।

3. सजीव श्वसन करते हैं जिसके द्वारा इन्हें ऊर्जा प्राप्त होती है।

3. इनमें श्वसन क्रिया नहीं होती है।

4. सभी सजीव उत्सर्जन की क्रिया में अपना वर्ण्य पदार्थ बाहर निकालते हैं।

4. निर्जीव में उत्सर्जन की क्रिया नहीं होती है।

5. सजीव प्रजनन क्रिया करके अपने जैसे जीव उत्पन्न करते हैं।

5. निर्जीव में यह क्रिया नहीं होती है।

6. सजीवों में आन्तरिक वृद्धि होती है जिससे वे सूक्ष्म रूप से वृहद् रूप धारण करते हैं।

6. निर्जीवों में वृद्धि नहीं होती है।

7. सजीव बाह्य वातावरण अथवा उद्दीपन के प्रति उत्तेजना प्रकट करते हैं।

7. निर्जीवों में ऐसा नहीं होता है।

8. सभी जीवधारी अपने को सुरक्षित रखने के लिये अपने को वातावरण के अनुकूल बना लेते हैं।

8. निर्जीवों में अनुकूलन क्रिया नहीं होती है।

9. सभी जीवधारियों में जीवन-चक्र चलता है।

9. निर्जीवों में जीवन चक्र नहीं चलता है।

10. सभी सजीव जीवधारियों में उपापचय की क्रियाएँ होती हैं।

10. निर्जीवों में यह क्रियाएँ नहीं होती हैं।

 

 

गतिविधि (Activity)

एक छोटे गमले में मक्का या सेम का बीज बो दें और उसके उगने का इंतजार करें। जब पौधा उग आये तब एक जूते के डिब्बे को नीचे दिये चित्र के अनुसार तैयार करें और फिर गमले को डिब्बे में रखकर डिब्बा बंद कर दें । गमलाला डिब्बे में रखने के पहले उसमें पानी अवश्य डाल दें। इसके बाद डिब्बे को बाहर ऐसे हवादार स्थान पर रखें जहाँ प्रकाश भी पर्याप्त हो। 5-6 दिनों के बाद डिब्बे को खोलकर देखें। पौधा प्रकाश की दिशा में मुड़कर बढ़ा हुआ दिखाई देगा।

इसी प्रकार गतिविधि से यह भी दिखाया जा सकता है कि पौधों की शाखायें गुरुत्वाकर्षण के विपरीत बढ़ती हैं और जड़ें गुरुत्वाकर्षण की दिशा में बढ़ती हैं। एक गमले में सेम के बीज बो दें और पौधों को उगने दें। पौधों के कुछ बड़ा हो जाने पर गमले को लिटाकर रख दें। कुछ दिन बाद आप बच्चों को दिखा सकते हैं कि सेम का पौधा टेढ़ा होकर ऊपर की ओर बढ़ रहा है और उसकी जड़ें टेढ़ी होकर नीचे की ओर बढ़ रही हैं।

 

 


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